विभीषण से कर लेने घटोत्कच गया था लंका, भीम पुत्र घटोत्कच से जुडी रोचक जानकारी पौराणिक कथायें, महाभारत Facts Of Ghatotkacha in Hindi: महाभारत में ऐसे अनेक पात्र हैं, जिनके बारे में लोग कम ही जानते हैं। ऐसा ही एक पात्र है भीम का पुत्र घटोत्कच। अधिकांश लोग ये जानते हैं कि घटोत्कच भीम व राक्षसी हिडिंबा का पुत्र था और उसकी मृत्यु कर्ण के हाथों हुई थी। इसके अलावा भी घटोत्कच से जुड़ी अनेक रोचक बातें हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको घटोत्कच से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं- घटोत्कच क्यों गया लंका? महाभारत के दिग्विजय पर्व के अनुसार, जब राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया तो भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव को अलग-अलग दिशाओं में निवास कर रहे राजाओं से कर (टैक्स) लेने के लिए भेजा। कुछ राजाओं ने आसानी से कर दे दिया तो कुछ युद्ध के बाद कर देने के लिए राजी हुए। इसी क्रम में सहदेव ने घटोत्कच को लंका जाकर राजा विभीषण से कर लेकर आने को कहा। घटोत्कच अपनी मायावी शक्ति से तुरंत लंका पहुंच गया। वहां जाकर उसने राजा विभीषण को अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया। घटोत्कच की बात सुनकर विभीषण प्रसन्न हुए और उन्होंने कर के रूप में बहुत धन देकर उसे लंका से विदा किया। ऐसे हुआ घटोत्कच का जन्म लाक्षागृह की आग से बच निकलने के बाद पांडव अपनी माता के साथ छिपते हुए वन में चले गए। उस वन में हिडिंबासुर नाम का राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। हिडिंबा ने जब भीम को देखा तो उससे प्रेम करने लगी। तभी हिडिंबासुर भी वहां आ गया। युद्ध में भीम ने उसका वध कर दिया। कुंती के कहने पर भीम ने हिडिंबा से विवाह कर लिया। कुछ समय बाद भीम और हिंडिबा के मिलन से एक महापराक्रमी बालक पैदा हुआ। वह क्षणभर में ही बड़े-बड़े राक्षसों से भी बढ़ गया और तुरंत ही जवान हो गया। उसके सिर पर बाल नहीं थे। भीम और हिंडिबा ने उसके घट अर्थात सिर को उत्कच यानी केशहीन देखकर उसका नाम घटोत्कच रख दिया। घटोत्कच ने की थी पांडवों की सहायता वनवास के दौरान जब पांडव गंदमादन पर्वत की ओर जा रहे थे, तभी रास्ते में बारिश व तेज हवाओं के कारण द्रौपदी बहुत थक गई। तब भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच को याद किया। घटोत्कच तुंरत वहां आ गया। भीम ने उसे बताया कि तुम्हारी माता (द्रौपदी) बहुत थक गई है। तुम उसे कंधे पर बैठाकर हमारे साथ इस तरह चलो की उसे किसी तरह का कष्ट न हो। घटोत्कच ने भीम से कहा कि- मेरे साथ और भी साथी हैं, आप सभी उनके कंधे पर बैठ जाइए। माता द्रौपदी को मैं अपने कंधे पर बैठा लेता हूं। इस तरह आप सभी आसानी से गंदमादन पर्वत तक पहुचं जाएंगे। पांडवों ने ऐसा ही किया। कुछ ही देर में घटोत्कच व उसके साथियों ने पांडवों को गंदमादन पर्वत तक पहुंचा दिया। घटोत्कच ने भी किया था दुर्योधन से युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में जब पांडव व कौरवों की सेना में युद्ध छिड़ा हुआ था, उस समय घटोत्कच और दुर्योधन के बीच भी भयानक युद्ध हुआ था। जब भीष्म पितामाह को पता चला कि दुर्योधन और घटोत्कच में युद्ध हो रहा है तो उन्होंने द्रोणाचार्य को कहा कि- घटोत्कच को युद्ध में कोई भी पराजित नहीं कर सकता। इसलिए आप उसकी सहायता के लिए जाईए। भीष्म के कहने पर द्रोणाचार्य, जयद्रथ, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण व अनेक महारथी दुर्योधन की सहायता के लिए गए, लेकिन घटोत्कच ने उन्हें भी अपने पराक्रम से घायल कर दिया। घटोत्कच ने अपनी माया से ऐसा भयानक दृश्य उत्पन्न किया कि उसे देखकर कौरवों की सेना भाग गई। घटोत्कच ने किया था अलम्बुष का वध युद्ध के दौरान घटोत्कच और कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे राक्षस अलम्बुष में भी भयानक युद्ध हुआ था। अलम्बुष भी मायावी विद्याएं जानता था। घटोत्कच युद्ध में जो भी माया दिखाता, उसे अलम्बुष अपनी माया से नष्ट कर देता था। अलम्बुष ने घटोत्कच को अपने तीरों से घायल कर दिया। गुस्से में आकर घटोत्कच ने उसका वध करने का निर्णय लिया। घटोत्कच ने अपने रथ से अलम्बुष के रथ पर कूद कर उसे पकड़ लिया और उठाकर जमीन पर इस प्रकार पटका कि उसके प्राण निकल गए। यह देख पांडवों की सेना में हर्ष छा गया और वे प्रसन्न होकर अपने अस्त्र-शस्त्र लहराने लगे। इसका भी वध किया था घटोत्कच ने जब कर्ण पांडवों की सेना का संहार कर रहा था। उस समय श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को अपने पास बुलाया और कर्ण से युद्ध करने के लिए भेजा। जब दुर्योधन ने देखा कि घटोत्कच कर्ण पर प्रहार करना चाहता है तो उसने राक्षस जटासुर के पुत्र अलम्बुष (यह पहले वाले अलम्बुष से अलग है) को युद्ध करने के लिए भेजा। इस अलम्बुष और घटोत्कच में भी भयानक युद्ध हुआ। पराक्रमी घटोत्कच ने इस अलम्बुष का भी वध कर दिया। दुर्योधन की ओर फेंका था अलम्बुष का मस्तक राक्षस अलम्बुष का सिर काटकर घटोत्कच दुर्योधन के पास पहुंचा और गर्जना करते हुए बोला कि- मैंने तुम्हारे सहायक का वध कर दिया है। अब कर्ण और तुम्हारी भी यही अवस्था होगी। जो अपने धर्म, अर्थ और काम तीनों की इच्छा रखता है, उसे राजा, ब्राह्मण और स्त्री से खाली हाथ नहीं मिलना चाहिए (इसलिए मैं तेरे लिए यह मस्तक भेंट के रूप में लाया हूं)। ऐसा कहकर घटोत्कच ने अलम्बुष का सिर दुर्योधन की ओर फेंक दिया। ऐसा था घटोत्कच का रथ महाभारत के द्रोणपर्व के अनुसार, घटोत्कच के रथ पर जो झंडा था, उस पर मांस खाने वाले गिद्ध दिखाई देता था। उसके रथ में आठ पहिए लगे थे और चलते समय वह बादलों के समान गंभीर आवाज करता था। सौ बलवान घोड़े एस रथ में जुते थे। उन घोड़े के कंधों पर लंबे-लंबे बाल थे, उनकी आंखें लाल थी। घटोत्कच का रथ रीछ की खाल से मढ़ा था। उस रथ में सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र रखे हुए थे। विरूपाक्ष नाम का राक्षस उस रथ का सारथि था। ऐसी हुई घटोत्कच की मृत्यु जब श्रीकृष्ण के कहने पर घटोत्कच कर्ण से युद्ध करने गया तो उनके बीच भयानक युद्ध होने लगा। घटोत्कच और कर्ण दोनों ही पराक्रमी योद्धा थे, इसलिए वे एक-दूसरे के प्रहार को काटने लगे। इन दोनों का युद्ध आधी रात तक चलता रहा। जब कर्ण ने देखा की घटोत्कच को किसी प्रकार पराजित नहीं किया जा सकता तो उसने अपने दिव्यास्त्र प्रकट किए। यह देख घटोत्कच ने भी अपनी माया से राक्षसी सेना प्रकट कर दी। कर्ण ने अपने शस्त्रों से उसका भी अंत कर दिया। इधर घटोत्कच कौरवो की सेना का भी संहार करने लगे। यह देख कौरवों ने कर्ण से कहा कि तुम इंद्र की दी हुई शक्ति से अभी इस राक्षस का अंत कर दो, नहीं तो ये आज ही कौरव सेना का संहार कर देगा। कर्ण ने ऐसा ही किया और घटोत्कच का वध कर दिया। घटोत्कच की मृत्यु से प्रसन्न हुए थे श्रीकृष्ण जब घटोत्कच की मृत्यु हो गई तो पांडवों की सेना में शोक छा गया, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए। अर्जुन ने जब इसका कारण पूछा तो श्रीकृष्ण ने कहा कि- जब तक कर्ण के पास इंद्र के द्वारा दी गई दिव्य शक्ति थी, उसे पराजित नहीं किया जा सकता था। उसने वह शक्ति तुम्हारा (अर्जुन) वध करने के लिए रखी थी, लेकिन वह शक्ति अब उसके पास नहीं है। ऐसी स्थिति में तुम्हे उससे कोई खतरा नहीं है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने ये भी कहा कि- यदि आज कर्ण घटोत्चक का वध नहीं करता तो एक दिन मुझे ही उसका वध करना पड़ता क्योंकि वह ब्राह्मणों व यज्ञों से शत्रुता रखने वाला राक्षस था। तुम लोगों का प्रिय होने के कारण ही मैंने पहले इसका वध नहीं किया था। Read More उर्वशी अप्सरा के पूर्व जन्म की कहानी दीपावली की प्रतिपदा को करें:–पाँचवे वेद ” महाभारत की पूजा, फिर करें गोवर्धन पूजा ||अदभुत रहस्य:- जब मृत्यु की भी हुई मृत्यु || कर्ण में सूर्य देव के साथ दम्बोद्भव असुर का भी था अंश, एक अदभुत पौराणिक रहस्य ब्रह्मा जी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने लिखी रामायण, महर्षि वाल्मीकि से जुडी कुछ रोचक बातें अगर आपके पास भी कोई प्रेरणा दायक कहानी , सत्य घटना या फिर कोई पौराणिक अनछुए पहलु हो और आप उन्हें यहाँ प्रकाशित करना चाहते है | तो कृपया हमें इस मेल hi@k4media.in पर लिख सकते है | या आप हमारे फेसबुक पेज पर भी सन्देश भेज सकते है| आप अपने अनुभव और सुझाव भी hi@k4media.in पर लिख सकते है | सुझाव के लिए कमेंट बॉक्स में जाकर अपना कमेंट डाल सकते है | आपके सुझाव हमें होंसला देते है, हमें प्रेरित करते है सदेव कुछ नया, अनकहे और अनछुए पहलुओ को आपतक पहुचने के लिए | धन्यवाद | वन्दे मातरम | हमारे लिए लिखे – नाम और पैसा दोनों कमाए Leave a Reply 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